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संगीत श्री प्रकाशन को आप सभी पाठकों और पुस्तक विक्रेताओ का स्नेह एवं सुझाव लगातार प्राप्त हो रहे हैं। उन्हीं सुझावों को ध्यान में रखकर ‘‘संगीत श्री प्रकाशन’’ आपको वह सभी पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए दृढ़ संकल्प है जो आपके तथा पाठ्यक्रम के अनुरूप हो। हम वर्तमान में अनेक पुस्तकों पर कार्य कर रहे हैं। जो कि विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के अनुसार हो। हम आपको अपने प्रकाशन की नयी-नयी पुस्तकें उपलब्ध कराते रहेंगे, यह हमारा आपसे वायदा है। आपको हमारे प्रकाशन के हर नये संस्करण में कुछ नया मिलेगा क्यों कि हम सभी पाठकों के रचनात्मक सुझावों को प्रेरणा के रूप में लेते हैं और रचनात्मक सुझाव के लिए हम उनके सदैव आभारी रहेंगे। हमारे प्रकाशन में अन्य प्रकाशकों की प्रतिष्ठित पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। रचनात्मक सुझाव और संगीत पुस्तकों/पाठ्यक्रम के विषय में जानकारी हेतु आपके फोन एवं ई-मेल की प्रतिक्षा रहेगी
संगीत श्री प्रकाशन को आप सभी पाठकों और पुस्तक विक्रेताओ का स्नेह एवं सुझाव लगातार प्राप्त हो रहे हैं। उन्हीं सुझावों को ध्यान में रखकर ‘‘संगीत श्री प्रकाशन’’ आपको वह सभी पुस्तकें उपलब्ध कराने के लिए दृढ़ संकल्प है जो आपके तथा पाठ्यक्रम के अनुरूप हो। हम वर्तमान में अनेक पुस्तकों पर कार्य कर रहे हैं। जो कि विद्यार्थियों के पाठ्यक्रम के अनुसार हो। हम आपको अपने प्रकाशन की नयी-नयी पुस्तकें उपलब्ध कराते रहेंगे, यह हमारा आपसे वायदा है। आपको हमारे प्रकाशन के हर नये संस्करण में कुछ नया मिलेगा क्यों कि हम सभी पाठकों के रचनात्मक सुझावों को प्रेरणा के रूप में लेते हैं और रचनात्मक सुझाव के लिए हम उनके सदैव आभारी रहेंगे। हमारे प्रकाशन में अन्य प्रकाशकों की प्रतिष्ठित पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। रचनात्मक सुझाव और संगीत पुस्तकों/पाठ्यक्रम के विषय में जानकारी हेतु आपके फोन एवं ई-मेल की प्रतिक्षा रहेगी
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स्वर वादन भाग-1
और वादन शैलियाँ भिन्न-भिन्न होती है। वादन शैली में मसीतखानी गत, रज़ाखानी गत, झाला एवं धुन होती है जो कि दोनों शैलियों में भिन्नता को दर्शाती है। ”स्वर वादन की शृंखला“ सितार, गिटार, हारमोनियम, कैसियो, बाँसुरी, सरोद, मैन्डोलिन, सारंगी आदि वाद्यों को ध्यान में रखकर लिखी गयी है। इसमें रागों का संक्षिप्त परिचय, आरोह-अवरोह, पकड़, न्यास, आलाप, मसीतखानी गत, उसकी ताने, रज़ाखानी गत, उसकी ताने एवं झाला लिखा गया है। इस पुस्तक में रज़ाखानी गत तथा झाला चिकारी वाले वाद्यों के लिये तथा बिना चिकारी वाले वाद्यों के लिये अलग-अलग दिये गये है। ”स्वर वादन भाग-1“ में कक्षा 9 एवं 10 के ICSE,CBSE बोर्ड एवं समकक्ष अन्य बोर्डो के समस्त राग तथा प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद, अखिल भारतीय गंर्धव महाविद्यालय मण्डल मुम्बई एवं प्राचीन कला केन्द्र चण्डीगढ़ के प्रथम दो वर्षों के पाठ्यक्रम के अनुसार राग दिये गये है। इस पुस्तक में सितार, गिटार, वायोलिन (बेला), मेंडोलिन, कीबोर्ड (कैसियो) तथा हारमोनियम का वर्णन, अभ्यास हेतु अलंकार तथा राग भैरव, राग अल्हैया बिलावल, राग काफी, राग भूपाली, राग कल्याण (यमन), राग भैरवी, राग आसावरी, राग विभास (भैरव थाट), राग वृन्दावनी सारंग, राग भीमपलासी, राग दुर्गा, राग देश, राग केदार, राग बागेश्री, राग बिहाग, राग मालकौंस, राग खमाज, राग तिलक-कामोद, राग जौनपुरी, राग तिलंग, राग पीलू की धुन, राग खमाज की धुन, राग भरैवी की धुन, राग तिलंग की धुन तथा उपरोक्त 20 रागों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है।